मौत की दस्तक
कैसा लगता होगा उसे जो दुनिया से जाता होगा ,
एक दर्द सीने में उठता होगा हद से जाता होगा ।
एक निम खामोशी फिर लंबी सी गहरी नींद में ,
खो जाता होगा फिर वो मौत के आगोश में ।
फिर जिस्म से जुदा होकर रूह उड़ जाती होगी,
खुदा ही जाने वोह उड़ के कहां चली जाती होगी।
जिंदगी भर जिसने की नेकिया ,चला ईमान पर,
उसकी मौत में सुकूं होगा और मुस्कान लब पर ।
और जिसने की बदी और बईमानी उम्र भर ,
उसकी मौत में दर्द होगा आह जुबान पर ।
खैर ! जो चाहे जो लिबास तो बदलना ही होगा ,
उतार कर रूह को नया पैरहन पहनना ही होगा ।
जो भी दाग है जिस्म के साथ नही जाने वाले ,
लिया गर खुदा का नाम तो वही बख्शने वाले ।
इस जन्म के कर्मों पर ही बनेगी नींव अगले जन्म की,
मकान अगर सुन्दर चाहिए जरूरत है नेक कर्मों की ।
जीतेजी तो समझ नहीं पाते हम यह कर्मों का खेल,
मगर जिस घड़ी जिस्म से जान जाए होता इनका मेल।
मौत की चौखट पर जब बुद्धि थोड़ी जागृत रहती है,
तभी मानस पटल पर फिल्म सी चलने लगती है।
सारी जिन्दगी और सारे जन्म एक साथ होते रूबरू,
तभी खुदा की याद सच्चे दिल की तो मुक्ति दे जरूर।
इसीलिए अरे इंसान वक्त रहते खुदा को याद कर ले ,
और करके नेक नामियां अपना दामाँ सुकून से भर ले।