मौत का भय ✍️…
दो उल्लू एक वृक्ष पर आकर बैठे थे।
एक उल्लू ने अपने मुंह में सांप दबोच रखा था,और दूसरा उल्लू चूहा पकड़ लाया था।
दोनों उल्लू वृक्ष पर पास – पास बैठे थे, सांप ने चूहे को देखा वह यह भूल ही गया, कि उल्लू के मुंह में है और मौत के करीब है, चूहे को देखकर उसके मुंह में लार बहने लगी।
चूहे ने जैसे ही सांप को देखा वह कांपने लगा,
जबकि सांप और चूहा दोनों ही मौत के मुंह में बैठे थे, दोनों उल्लू बड़ा हैरान हुए।
एक उल्लू ने दूसरे उल्लू से पूछा कि भाई, इसका कुछ राज समझे..?
दूसरे ने कहा, बिल्कुल समझ में आया।
पहली बात तो यह है कि जीभ की इच्छा इतनी प्रबल है, कि सामने मृत्यु खड़ी हो तो भी दिखाई नहीं पड़ती।
दूसरी बात तो यह समझ में आई कि भय मौत से भी बड़ा भय है, मौत सामने खड़ी है उससे यह भयभीत नहीं है, लेकिन चूहा भय से भयभीत कि सांप कहीं हमला न कर दे।
शिक्षा:- ( अभिप्राय )
हम भी मौत से भयभीत नहीं है,
वैसे ज्यादा भयभीत है। ऐसे ही जीभ का स्वाद
इतना प्रगाढ़ है, की मौत 24 घंटे खड़ी है, फिर
भी हमें दिखाई नहीं पड़ती है, और हम अंधे।
होकर कुछ भी डकारते रहते हैं ।
( स्वरचित ✍️..)