मौत का डर
जिंदगी एक पतंग की डोर है,
जो बिन पूछे चली जाती है।
तलवार की धार पर खड़े है लोग,
पता नही चलता कब कट जाती है।
एक पल की जिंदगी है तब भी,
गुमान क्यूं इतना दिखलाती है।
ना जीने का डर, होकर निडर,
जिंन्दगी ऐसी खेल खेल जाती है।
जिंदगी अनमोल है ऐसी ,
तब भी मौत गले लगा लेती है।
अनिल “आदर्श”