मौजु
डा . अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
कौन कह्ता है कि उदासियाँ
महज़ उन्हीं के हिस्से होती हैं //
जो किसी के गम्ख्वार होते हैं
तज़ुर्वा कह्ता है के ये कर्म भी //
दुनियाँ में इनकी ह्क्दार होती हैं
फ़िसल जाना, कहीं भी रेत पर //
यारा कभी कभी किसी की
किस्मत होती है, जो सूखे में रपट //
जाते हैं अजी साहिब ये तो
बडी अज़ीब ही बात होती है //
कौन कह्ता है कि उदासियाँ
महज़ उन्हीं के हिस्से होती हैं //
मैं दिखता हूँ जैसा नही बिल्कुल
हूँ मैं वैसा , लगा कर हाँथ जब देखा
किसी ने, तो बोला सब झूट है धोखा
यकी आये भी अब कैसे उनको
मिले जो आज तक भी नहीं हमको
बना कर ख्याल गुर्बत में कहना
यारों ये तो ऐसे लोगों की तासीर होती है
कौन कह्ता है कि उदासियाँ
महज़ उन्हीं के हिस्से होती हैं //