मौका…
मुमकिन नहीं
नदी के किनारों का मिलना
तो क्या
साथ बहतें
जानें से किसने रोका है…
मंजिल तक साथ नहीं
तो क्या
सफ़र का साथ
तय करने से
किसने टोका है…
गैरइरादतन ही साथ
चल पड़े हैं
तो क्या
निभा लो ज़नाब
यकीनन यही मौका है…
-✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’