मोह मोह के धागे
मोह मोह के धागे
पता है ये तेज़ हवाएं
क्यों चलती हैं आजकल?
मैं बताती हूँ,
ये जो पत्ते अभी भी
अपनी शाखाओं को
छोड़ने को तैयार नहीं हैं ना
उनके लिये,
नयी कोंपलें फूट रही हैं,
नए पल्लव आने को
इंतज़ार में हैं
यही परिवर्तन
प्रकृति का नियम है,
पुराने पात गिर कर भी
तेज़ हवा से अपने पेड़ के
तने से लिपट जाते हैं
कहते हैं कि
हमें अपने से जुदा तो
कर दिया पर हम
अब भी तुम्हें
समर्पित हैं,
मिट्टी में मिल खाद
बन कर तुम्हें ही
पोषित करने की
इच्छा रखते हैं,
शायद इसे समर्पण
कहते हैं,
मगर मैं मोह कहती हूँ,
जैसे इंसान अपनो से
दूर जाना नहीं चाहता
लाख तकरार,दुत्कार मिले
फिर भी वहीं रहता है,
पर इंसान की तुलना
पत्तों से कैसे की
जा सकती है,
इन्हीं पेड़ों की छाँव
में तो ज़िंदगी गुज़ार
देता है और एक दिन
स्वार्थ में अंधा हो कर
इन्हीं को काट देता है,
पर ये पेड़ बड़े ही
दयालु प्रकृति के होते हैं,
तुमसे मोह नहीं छोड़ते,
तुम्हें अन्त तक साथ देते हैं
एक दिन आखिरी यात्रा
में ये तुम्हें,खुद को जला कर
मिट्टी कर देते हैं,
फिर उस मिट्टी से पैदा
होता है एक नया
पेड़! एक नया पेड़!
जो तुम भी हो सकते हो,
फिर वही पेड़, वही पात,
वही तेज़ हवाएं,
बस यही जीवन चक्र है,
यही है मोह मोह के धागे
दीपाली कालरा