मोह भंग
कुछ दिनों पूर्व मैं वाराणसी में काशी विश्वनाथ जीके दर्शन के लिए परिवार के साथ जा रहा था । करीब 2 किलोमीटर दूरी पर एक तरफा यातायात होने की वजह से हम लोग एक ई-रिक्शा पर बैठ गए । गोदौलिया चौराहे से मंदिर के गेट नंबर 4:00 तक पूरा रास्ता चढ़ाई का था , सड़क लगातार ऊंची उठती जा रही थी । वहां पहुंचकर मुझे एक विहंगम अन्न क्षेत्र दिखाई दिया जो कि मंदिर के आसपास की घनी बस्ती को साफ कर तैयार किया जा रहा था । हाल ही में उस अन्न क्षेत्र का हमारे प्रधानमंत्री जी ने उद्घाटन किया था । उस गेट नंबर 4:00 पर खड़े होकर उस स्थान की ऊंचाई और विशालता देखकर मेरे मुंह से अनायास ही निकला
‘ शायद इस जगह पर कोई पहाड़ी या ऊंचा टीला रहा होगा जिस पर इसे बनाया गया होगा । ‘
मुझे पता नहीं चला कि कब उस ई-रिक्शा चालक ने मेरे मुंह से निकली यह बात सुन ली थी । वह तुरंत पीछे मुड़कर मुझसे बोला
‘ साहब इस जगह पर इन्हें किसी ने बनाया नहीं है बल्कि हमेशा से ये यहां ऐसे ही हैं । शिव स्वयम्भू अनादि काल से सृष्टि के आरंभ के भी पहले से यहां पर विराजमान हैं । यह सारे देवी देवता आदि सब इनके बाद आए हैं ।
उसकी बात सुनते ही मुझे एक अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति का आभास हुआ । नाहक मैं जीवन भर नहा धोकर शिव श्लोकों को बिना अर्थ जाने बिना उन्हें अपने जीवन में अपनाए भजता रहा । उस क्षण मुझे अनन्त , अविनाशी , कल्पान्तकारी , देवों के देव महादेव स्वयम्भू शिव जी की विशालता अपने चहुँ ओर जहां तक मेरी सोच , समझ , कल्पनाशीलता और दृष्टि जा सकती थी आभासित हो रही थी । हम सब जीवन के उपरांत इस मृत्युलोक के आवागमन , पुनर्जन्म के बंधन से मुक्त होकर उस परम् शिव तत्व से में विलीन हो जाने की कामना करते है ।
इसके पश्चात कब मैंने औपचारिकता में एक लंबी लाइन में लग कर काफी देर बाद उस शिवलिंग के दर्शन किए और फिर उसी चालक के ई-रिक्शा पर से जाकर संकट मोचन जी के दर्शन किए मुझे नहीं याद। मुझे वह ई-रिक्शा चालक बहुत अच्छा लगा । मेरी उस शाम को मुझे उसने अन्य कुछ स्थानों पर घुमाते हुए घर लाकर उतार दिया । उसकी सवारी से उतरते समय मैंने उसको धन्यवाद दिया तो वह मुझसे बोला साहब आपको किसी गुरु की आवश्यकता है । मैंने उसे भुगतान करते हुए मन ही मन विचार किया कि गुरु तो आज तुम्हारे स्वरूप में मुझे मिल ही गए , शिवतत्त्व का मर्म मैं तुम्हारी वाणी से जान सका।