मोहे लगा प्रेम रोग
गीत
मोहे लगा प्रेम रोग वैद्य कहें लाइलाज
तेरे हाथों में दे दी है अब मेरी लाज।
तुम बिन जियरा न माने मनाऊं
अब के ना आए तो मैं आ जाऊं
आने जाने में खुल जाए ना कोई राज
तेरे हाथों में —–
तुम बिन रहते हैं हम तो अधूरे
यादों में गुजरे हैं दिन रैन मेरे
तुम्हें आना ही होगा मेरे पास आज।
आज तेरे हाथों—-
जब से मिले खूब सपने दिखाए
सारे जतन किए मुझको मनाए
अब नकारे हैं मुझे ,करे खूब काम काज
तेरे हाथों में ——
दिल भी तड़पता था बरसी थी अखियां
पागल सी फिरती थी हंसती थी सखियां
फिर भी तुझको ही चाहूं, मुझे तुम पर नाज
तेरे हाथों में ——
मोहे लगा प्रेम रोग बैद्य कहें लाइलाज।
तेरे हाथों में दे दी है अब मेरी लाज
श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव साईंखेड़ा