“मोहे रंग दे”
मोहे ऐसे रंग दे, मैं किसी को नजर न आऊं,
जैसे रंग फूलों का वैसे ही रंग जाऊं।
वसंत में टेसू के रंग,
खेतों में सरसों के रंग,
मोहे रंग दे, मोहे रंग दे,
बहारों में सातों रंग।
मोहे रंग दे प्रीत के रंग,
मोहे रंग दे सात सुरों के रंग,
मोहे भर दे अंग अंग,
सावरिया श्याम के रंग।
जानकी पर राम का रंग,
राधा पर श्याम का रंग,
गौरी पर भोले का रंग,
मीरा पर गिरधर का रंग।
मोहे भाए ऐसा रंग,
रंग दे, मोहे रंग दे,
प्रीत का रंग सबसे सच्चा,
जो छोड़े ना मेरा संग।
ओढ़ के मैं लाल चुनर,
जो उतरे न मेरे अंग,
मोहे रंग दे श्याम सावरिया,
लागे न किसी की नजरिया।
सपने रंग दे,
अपने रंग दे,
सुख भी रंग दे,
दुख भी रंग दे।
धड़कन रंग दे,
सरगम रंग दे,
मोहे रंग दे,
वसंती रंग दे।
अंग अंग अभिभूत रंग,
मोको भाये न कोई रंग,
मोहे रंग दे श्याम सावरिया,
कुछ अपने संग, कुछ पी के संग।।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव✍️
प्रयागराज