मोहब्बत
मोहब्बत –
किसी सरोवर के जल में –
छुपी मचलती तरंग ;
तोड़कर अपने तट की सीमाएँ ,
रूप ले लेती है
भयंकर झंझावात का –
जब समाज की कुरीतियाँ –
रूढियों की कटार से –
छलनी कर देती हैं
सुबकते हृदय को ;
जातिवाद के घिनौने
जाल में जकड़ कर….।
(मोहिनी तिवारी)