मोहब्बत के नहीं आसार होंगे
मोहब्बत के नहीं आसार होंगे
ख़ुले नफ़रत के जब बाज़ार होंगे
किनारे पर खड़े लाचार होंगे
बिना कश्ती बिना पतवार होंगे
ज़ुबाँ का वार भी लगता है कडुवा
नज़र के तीर भी तलवार होंगे
ज़ुबाँ नज़रें हैं यक़ता हुस्न है फिर
न जाने और क्या हथियार होंगे
झुलस जाते हैं कितने बेख़ुदी में
बहुत से इश्क़ में बीमार होंगे
वहाँ कोई कभी जाता नहीं है
वहाँ के रास्ते पुरख़ार होंगे
मेरे दुश्मन हुए हैं मेहरबाँ अब
सुना है जल्द वो दो-चार होंगे
ग़रीबों की ज़मीनें फिर से छीनी
महल फिर से यहाँ तैयार होंगे
सदाक़त के नहीं पुल बन सके हैं
खड़े जब झूट के मीनार होंगे
अभी ‘आनन्द’ है उम्मीद बाक़ी
कभी तो आपके दीदार होंगे
शब्दार्थ:- यक़ता = unique
– डॉ आनन्द किशोर