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30 May 2022 · 1 min read

मोहब्बत के ताज

मोहब्बत के ताज
***************

आज फिर है सुनी
डरावनी सी आवाज
शायद शुरू हुआ
आजकल ऐसा रिवाज़
बेतुकी हरकतों से
नहीं आता कोई बाज
तीखी कर्कश देने लगा
पुराना पड़ा हर साज
रोज़ ही बलि चढ़ती,
बेकाबू मांगपत्र दाज
कोई नही समझ पाया
जीवन जीने का राज़
पूर्ण कोई होता नही
शुरू किया हर काज
चैन से रहने न दे
छिड़ी हुई खाज
मनसीरत जैसे न बना पाए
मोहब्बत के महल ताज
********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
142 Views
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