मोहब्बत के गवाह
वो नदिया, वो दरिया,
वो फूलों की बगिया,
वो सरसों के खेत,
और उनकी मेङ,
वो अमराई की छांव,
वो नदिया की नाव,
वो चाय की प्याली,
वो जूठे बिस्किट की मिठास,
वो अटा का कोना,
वो अनजानी छुअन,
वो आंखों की शर्म,
वो चंचल होठों की मूकता,
वो सामने होकर भी
मिल न पाने की विवसता,
सभी थे गवाह,
मोहब्बत के मेरी,
पर प्रेम की कचहरी में,
वो किसी ओर के साथ थे,
और मुझ पर था,
मोहब्बत का इल्जाम
आज मैं था एक,
बेजुबान, निर्दोश, गुनहेगार,
मेरे सारे गवाह मौन थे,
वो नितांत गूंगे थे,
किसी ने मेरी,
गवाही न दी॥
पुष्प ठाकुर