मोहब्बत की समझदारी
अब नहीं मिलना तुझ में मिट्टी मैं पानी की तरह तुम जो आजकल समझदार बन बैठे हो
नहीं लगता मुझे बुरा तुम्हारी बातों का
तुम जो मेरी बातें मुझ पर ही आजमा बैठे हो
लगता है अब तुम समझदार बन बैठे हो
विता दिया वक्त बहुत तुम्हारी
याद में लगता है
कहीं मोहब्बत का कारोबार कर बैठे हो आजकल तुम जो साहूकार बन बैठे हो मोहब्बत तुम आजकल बहुत समझदार बन बैठे हो !
लेखक – आशीष गुर्जर