मोहब्बत की सच्चाई
सच्ची मोहब्बत में सम्मान अपमान कौन देखता है,
मोहब्बत करने वाला तो बस मोहब्बत देखता है,
पत्थरों से ठोकरें लगती हैं और जिस्म लहूलुहान होता है,
प्रेम और धैर्य के हथौड़े से कटकर ही पत्थर भगवान होता है,
मोहब्बत इतनी आसान नहीं जितनी समझ ली जाती है,
जिस्म की हवस होती है और मोहब्बत समझ ली जाती है,
तेल को तो बाती से बेइंतहा प्रेम होता है,
साथ दोनों जलते हैं तभी अंधेरे में प्रकाश होता है,
दूर होते हुए भी आसमान धरती की हर धड़कन को समझता है,
वो मोहब्बत करता है तभी तपती गर्मियों में बरसात करता है,
खुदगर्ज क्या जाने मोहब्बत की प्यास कैसी होती है,
साल भर प्यासा रहकर ही पपीहा बारिश की आश करता है,
परवाने झलक भर पाने खुद को फना कर देते है,
समा जलती रहती है और आशिक राख होते हैं,
मोहब्बत ने खींचकर ही लैला को मजनू से मिलाया था,
मोहब्बत ने ही अग्निपरीक्षा में सीता को जिलाया था,
मोहब्बत शब्द सुनकर लोग मोहब्बत करने आते है,
प्रेम का लिवास पहनते हैं और अंदर भेड़िये बनकर आते हैं,
ना पाना ना खोना यही मोहब्बत का अंजाम होता है,
जो पाना चाहता है मोहब्बत नहीं वो हवस का गुलाम होता है ।।
prअstya……..(प्रशांत सोलंकी)