मोहब्बत की राहों में चलिए जरा संभल कर… (ग़ज़ल)
मोहब्बत की राहों में चलिए जरा संभल कर
सब देखती हैं दुनिया मिलिए जरा संभल कर
दरख दीवारो के भी कान होते है इस जहाँ में
इज़हार ए मोहब्बत करिए जरा संभल कर
शोहरत ए मंजिल पर आपकी जलते है लोग
अपनी तरक्की सुनाइये जरा संभल कर
आपके पेट पर लात मारेंगे वक़्त बदलते ही
दूसरों को रास्ता दिखाईये जरा संभल कर
सब आपका हित ही सोचे ये जरूरी नही जनाब
सगे को भी राज की बात बताइये जरा संभल कर
© पियूष राज ‘पारस’
Dt – 30/11/2024