मोहब्बतों की डोर से बँधे हैं
मोहब्बतों की डोर से बँधे हैं
हम सब
मोहब्बत ना होती तो हम बिखर
जाते तितर-बितर हो जाते।
“चाहतों की भी एक फ़ितरत है
चाहता भी उसे है ,जो नसीब में
नहीं होता।
कहते हैं की मोहब्बत में इंसान खुदा हो जाता है
खुदा हो जाता है शायद इसीलिए सबसे
जुदा हो जाता है ।
“ना जाने क्यों लोग मोहब्बत को बदनाम
किया करते हैं ,मोहब्बत तो दिलों में पनपा करती है
मोहब्बत के नाम पर क्यों ?
क़त्ल ए आम किया करते हैं।
“मोहब्बत तो रूह से रूह का मिलन है
मिट्टी का तन सहता सितम है “
“मोहब्बत तो जलते हुए चिराग़ों
में शमा बनकर रहती है ,
जितनी जलती है उतनी ही पाक
हुआ करती है “
“मोहब्बत के चिराग़ों के हौसलें भी
क्या ख़ूब होते है , आँधियाँ आती हैं
तूफ़ान आते हैं सब स्वाहा हो जाता है
पर मोहब्बत के चिराग़ रूहों में बड़े शान से जलते
रहते हैं।
मोहब्बत ख़ुदा है तभी तो ज़माने से जुदा है
मोहब्बत खुदा की बखशी हुई नियामत है
जो हर किसी को नसीब नहीं होती ।
मोहब्बत की आग से जो ख़ुद को रोशन करता है।
वो आबाद है ,परन्तु जो आग संग खेलता है
उसको जलकर राख हो ही जाना पड़ता है ।