जनाज़ा देख ले
जनाज़ा देख ले मेरा जो गुज़रा है तेरे दर से
कहीं नदियां जुदा होती महफ़िल ए समंदर से
बड़ा कमबख्त था ये, नासमझ बस चाहता तुमको
कफ़न भी उड़ गया देखो तुम्हारे रोज़न ए दर से
शिकायत भी करें तुझसे बगावत भी करें तुझसे
कभी नफ़रत करें तुझसे मोहब्बत भी करें तुझसे
अगर शामिल हमारे खेल में तू दिल से हो जाए
अदावत भी करें तुझसे , इबादत भी करें तुझसे
मोहब्बत है अलग दुनिया जहां दो दिल धड़कते हैं
यहां हर रात दीवाने विरह में तड़पते हैं
मुकम्मल है मिलन उनका महज़ ख़्वाबों में ही ‘माना’
कभी नजरें बरसती हैं कभी मौसम बरसते हैं