मोहन तुम थे एक मुसाफिर
मोहन तुम थे एक मुसाफिर
हमको कभी नहीं ज्ञान हुआ ,
इक दिन तुमको जाना होगा
इसका तनिक नहीं भान हुआ ।
नँदबाबा ने गोद खिलाया
मैया से ममता पान हुआ
माखन ग्वालिन का चुराया
गोपिन सँग रास महान हुआ ।
प्रेम राधिका ने बरसाया
तू कृष्णा मीत जहान हुआ
सुदामा मित्र रूप में भाया
मित्रता का भी सम्मान हुआ ।
चौरासी कोस का बृजमँडल
तुम्हारा लीला स्थान हुआ ।
तुम सा मुसाफिर मिला बृज को
जिससे यह पावन धाम हुआ ।
डॉ रीता