मोसे बोलो न कन्हैया
राधा जी की शिकायत द्वारिकाधीश से
गीत
मोसे बोलो न कन्हैया ,मैं दूंगी गारी
यमुना में स्नान को जाऊँ,मेरी चुनरिया झपटी।
जब जब जाऊँ पनिया भरन को, सिर से मटकी पटकी।।
राह रोको ना सांवरिया, मैं दूंगी…..
चूड़ी बेंचन को जब आए, कैसे रास रचाए।
रंग बिरंगी चूड़ी सबको, भर-भर बांह पहनाए।।
मेरी मोड़े़ फिर कलाइयां, मैं दूंगी…..
नटखट कान्हा पेड़ पर बैठे वंशी मधुर बजाए।
व्याकुल ग्वाले, गोपी, राधा ,गौएँ दौड़ के आयें।।
सुध लेते अब नइयां, मैं दूंगी…..
दही मथु ,माखन निकालूँ ग्वालों संग खा जाए।
द्वार अगर मैं बंद करूं तू खिड़की से आ जाए।।
कहे खायो नहीं मैया, मैं दूंगी…..
कान्हा से तुम कृष्ण बने फिर द्वारिकाधीश कहाये।
गीता ज्ञान समझ ना आए प्रेम में अश्क बहाए।।
मैं तो हो गई बावरिया ,मैं दूंगी…..
✍?श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव