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6 Mar 2024 · 1 min read

*मोलभाव से बाजारूपन, रिश्तों में भी आया है (हिंदी गजल)*

मोलभाव से बाजारूपन, रिश्तों में भी आया है (हिंदी गजल)
_________________________
1)
मोलभाव से बाजारूपन, रिश्तों में भी आया है
जिसने खर्च किया है जैसा, वैसा रिश्ता पाया है
2)
सौदेबाजी यों करते हैं, समधी-समधी आपस में
व्यापारी से खरीदार ज्यों, कोई आ टकराया है
3)
नाटक के पात्रों के जैसे, कुछ कर्कश संवाद हुए
मधुर छंद की तरह किसी ने, कब विवाह को गाया है
4)
दो बूढ़े उलझे विवाह की, लेन-देन की बातों में
भरे प्यार से दो हृदयों ने, सब संसार भुलाया है
5)
आगंतुक की नजर ढूॅंढती, दावत का मीनू क्या है
मेजबान के सुखद स्वप्न में, सिर्फ लिफाफा छाया है
_________________________
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451

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