मोर
छाये बदरा जब गगन, गड़-गड़ करते शोर।
फैला कर निज पंख को, वन में नाचे मोर।
वन में नाचे मोर,मस्त होकर मतवाला।
मनमोहक चितचोर, पंख है बूटे वाला।
सिर पर सुन्दर ताज, राष्ट्र पक्षी कहलाये।
सुखद नृत्य को देख , बाग में खुशियाँ छाये।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली