मोर गांव के गौटिया मोती
मोर गांव के गौटिया मोती
मोर गांव के गौटिया मोती,नाम तो बड़ सुघ्घर रिहिस ,
आन गांव ले आया रिहिस
जब पहिली अइस,तब केंवल पांच एकड़ खेत लिए रहीस ,गांव म पहिली बेवहर याने कर्जा दे के शुरू करिस वो जमाना म दूं रूपया ब्याज देवय,अऊ खेत खार ल लिखा लेवय ,सब झन खुश राहय ,खगे बड़हे गौटिया ह उधार बाड़ही पैसा कौड़ी देथे, मदद करथे उकर चाल ल कोनो नई समझय।
फेर मैहा अऊ एक झन पढ़हंता बाबू रघुनंदन जरूर समझन,दाल म काला हावय ,बेरा बेरा म ओकर बिरोध करना ,फेर सियान मन के आगू म हमर का चलतिस,गांव भर ओकर करा लागा बोड़ी म छंदाय रिहिस ,सुत उठके ओकर ले बड़े बड़े मन ओकर पांव परय,मोर जीव बौखलावत राहत, एड़ी रिस तरवा म चढ़ जय ,कोनो ओकर खिलाफ गोठियाय सकय नहीं।
एक दिन तरिया म नाहवत नाहवत एक ठन कुकुर ल देख डारेव तब चिल्ला के कहेव ,अरे मोती तू तू
आव ,वोहा सुनत राहय अऊ जान डरिस येहा मुही ल काहत हे कहिके, फेर कुछू नई किहीस,।
ए गांव भर म मास्टर के भतिजा भर ल डर्राथव ऐसे दुसर दुसर करा गोठियावय,मरंगे फेर मोर नाव ल कभु नई लिस,एक दिन घातेच बेरा ले सोचेव ,येहा मोला काबर डर्राथे अऊ मया करके घलो गोठियाथे, एक दिन पुछ परेव,कस गा तै मोला काबर डर्राथच,
तब कहिस ये गांव भर म तहइच भर गौंटिया नई काहच ,बाकी सबझन मोर पांव परथे,तै मोर का कमजोरी जानथच,तब मैं कहेव,तोर लुटे के तरीका ल जानथव ,तै वोला लागा बोड़ी देथच जऊन पटाय नई सकय अऊ अपन खेत खार ल ब्याज म तोरे करा बेचय,बात सही आय,जऊन लागा बोड़ी ल पटा देतिस वोला बिहान साल कर्जा नई देवय ,अऊ जऊन नई पटा सकय तैसन तैसन ल कर्जा देके उकर खेत खार ल
लुट डारिस सौ डेढ़ सौ एकड़ खेत बनाके मर घलो गए।
जब वो मरिस तब वोकर काठी म एक्को झन नई गिस ।का मिलिस बईमान ल।गांव म अड़बड़ हक सुन्दर होवय ,गांव भर चढ़ोत्तरी चढावय ,फेर एंकर हाथ के एक पैली धान कभु नई चढईस।। न खाय के सुख पईस न पहिने के ,बुढ़त काल मां भतिजा के मार खइस,ऐसन चंडाल रिहिस बुझा ह। आज गांव भर ओकर रोना ल रोवत हे।
लेखक
डां विजय कुमार कन्नौजे अमोदी वि खं आरंग जिला रायपुर छत्तीसगढ़