मोर के पंख
मोर के पंख
मोर से हैं पंख मेरे
मन में है उड़ान
चाहूँ तो भी
उड़ न पाऊँ
गुण ही हैं अवगुण मेरे
इस बात से अनजान
दूजा बता दे तो मैं
सह न पाऊँ
काक से है वाक् मेरे
कोई न दे ध्यान
मन की बात को मैं
कह न पाऊँ
ख़्वाब से हैं महल मेरे
पानी में ही झलके
चाहूँ कितना भी मैं
छू न पाऊँ
पथरीली राह मेरी
पाँव कष्ट में
ज़िद है बस पाँव मैं
सही राह पे लाऊँ
यतिश १/९/२०१७