मोरे घनश्याम
मोरे घनश्याम
दरश दिखा के
प्यास जगा के
कुछ क्षण मोरे
संग बीता के शाम !
मुझ विरहन को
तू छोड़ अकेला
कौन देस गया
हे मोरे घनशाम !
मैं पल-पल जलूँ
ना जिऊँ ना मरूँ
ढड़े नैनों से नीर
मन को ना आराम !
कजरा संग अँखियां
बिंदिया संग लिलरा
वेणी संग मोर जूड़ा
निक लागे नाहिं राम !
तुझ संग सब निक लागे
सब हौं अब तो अभागे
काहे का करूँ मो सिंगार
कौन नाहिं इनके दाम !
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दिनेश एल० “जैहिंद”
06. 02. 2017