मोबाईल
वो भी क्या दिन थे जब हम तुम बिन थे।
दिन हो या रात चारों और था , सुकून का साथ बात हो गई वो अब बीते ज़माने की, अब हम सब भूले कैसे हम रहते थे ।
आज भी जब कोई याद दिला जाता है बिसरे दिन महका जाता है वो मिलना वो झगड़ना वो सबका एक जरा सी बात पर भी खिल खिलाकर हंसना जब हम एक साथ बैठा करते थे ।
पास होकर भी आज कोई पास नहीं ,
तन्हा होकर भी तन्हाइयों की बात नहीं ,
ना दादी नानी की कहानी रही क्योंकि अब सब तुम्हारे पास रही अब वो वक्त कहां जब बडे बुढे संग कहानियों के पिटारे खुला करते थे
तुम कितने ज्ञानी महान हो छोटे से लगाकर बडे कि आस हो जीवन का एक अहम हिस्सा हो मस्ती छुट्टी बचपन की कश्ती डूबी जब मस्ती में हम खेला करते थे ।
वह भी क्या दिन थे अब सारी बातें भी सिर्फ तुमसे अब सारा ज्ञान भी सिर्फ तुमसे मनोरंजन व खेल का मैदान भी तुमसे तुम ही गुरु तुम ही माता-पिता तुम ही मेरे सखा अब हंसना भी तुमसे रोना भी तुमसे तुम ना होते तो हम क्या होते
अब तुम ही आरंभ और तुम ही अंत हो
मेरे मोबाईल मेरा सब कुछ तुम हो