मोबाईल माँगती लड़की…..
मोबाईल माँगती लड़की
बात है ये एक बार की।
हर रोज़ आती वो वहाँ,
प्रेमी मिलने जाता जहाँ।
निकल गया वो ऐसा,
छोड़ गया उसे वैसा।
जाने क्या उस पर बीते,
काट रही दिन जागते – सोते।
फिर निश्चय उसने बनाया,
उसने क्या इसमें है पाया।
केवल सब कुछ खोया है,
कुछ भी तो ना पाया है।
घर छोड़,बंधन तोड़ दी,
मार्ग उसने वहीं मोड़ ली।
पर ना पता उसे,
भ्रम प्रेम करती जिसे।
बार – बार वो उसे पुकारे,
पर कोई ना बात सुना रे।
कब पड़ी चक्कर में उसके,
दिया किनारा,कर वो खिसके।
बेचैन हुई,बेताब हूई,
पर ना उससे बात हुई।
किया फ़ैसला उसने एक दिन,
दुनियाँ छोड़ चली उसके बिन।
फ़िर भी उसने मोक्ष न पाया,
सोचा जिसने बहुत तड़पाया।
उसको कैसे माफ़ करूँ,
दुनियाँ से मैं क्यों डरूँ।
भटक रही है वहीं आत्मा,
न जाने कब मिले परमात्मा।
आते – जाते लोग सहमते,
ऐसा कुछ है यहाँ भरम से।
होगा क्या,वह लड़की थी,
बहुत जो एक दिन तड़पी थी।
माँगती मोबाईल सबसे,
रह गयी,वहीं वो तब से।
ज़रा प्रेमी से बात करूँ,
अपने दिल का हाल कहूँ।
ऐसा भी क्या प्रेम है करना,
जो केवल दे देता मरना।
सोनी सिंह
बोकारो(झारखंड)