मोबाइल से मुझे बचाओ
मोबाइल से मुझे बचाओ
मोबाइल की लत में ,लग गया
रात-रात भर , नींद से जग गया।
हो गया चौपट , मेरा जीवन ।
हाय रे मैं तो, राह भटक गया ।।
हॉकी, खो-खो, भूल गया मैं ।
कद्दू जैसे फूल गया मैं ।
आया है जबसे नया मोबाइल ।
खाना-पीना भी भूल गया मैं ।।
वाटसअप, फेसबुक है मजबूरी ।
पढ़ना, लिखना ,नहीं जरूरी ।
ट्विटर रात में देख ना लूं तो ।
नींद नहीं आती है पूरी ।।
सब ,योग साधना ,भूल गया मैं ।
दिनों, महिने , ना ,स्कूल गया मैं ।
लगता नहीं मुझको कुछ अच्छा ।
आता था, वो भी, भूल गया मैं ।।
इसको देखूँ , मैं बार-बार ।
करता नहीं, किसी का ऐतबार ।
कब आएगा, मैसेज इसमें ।
दिल मेरा रहे बेकरार ।।
नहीं जरूरत, खेती-बाड़ी
नहीं काटुगाँ, अब मैं दाढ़ी।
गेम खेलना – जरूरी इतना
चलती है मेरी इससे नाड़ी ।।
काम मिला है ,मुझको ऐसा ।
मिले ना इसका ,रुपया-पैसा ।
गले लगाऊं, दिनभर, इसकों ।
दोस्त नहीं कोई है ऐसा ।।
रह गया आज , दौड़ में पीछे ।
चढ़ गए सब, मै रह गया नीचे ।
लाइक, शेयर के चक्कर में पड़ कर।
कांटे बन गए, मेरे बगीचे ।।
हरदम रहता, हाथ मोबाइल ।
कान में लीड हैं ,दोनों साईड़ ।
दिखे ना, इसके अलावा कुछ भी ।
बैल भी देता, खुद ही साइड़ ।।
अरविंद कवि ने ये, बात सिखाई
अभी देर नहीं, हुई है भाई ।
छोड मोबाइल, खुद को संभालो ।
आंख खुली तो, रोशनी आई ।।
देर नहीं हुई है अभी यारा ।
जीवन पड़ा ,हुआ है सारा ।
कवि की बात ,आज मान ले ।
जीवन संवरे , मिले सहारा ।।