Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Dec 2023 · 3 min read

मोबाइल पर बच्चों की निर्भरता:दोषी कौन

आज हमारे घर परिवार में एक बड़ी समस्या भविष्य की चुनौती बनने की दिशा में तेजी से पांव पसारती जा रही है। इसके लिए किसी को दोषी मानने के बजाय हर किसी जिम्मेदार नागरिक को सजगता की जरूरत है, माता पिता और परिवार के वरिष्ठ सदस्यों को इस दिशा में स्वयं अनुशासित होने की जरूरत है। अति आवश्यक जरूरतों के अलावा क्वालिटी टाइम बच्चों के लिए ही नहीं अपने लिए भी निकालना होगा, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से दूर रहने के लिए हमें संकल्पित होना होगा और अपने व अपने बच्चों को पर्याप्त समय देना होगा।
यह सही है कि आज मोबाइल पर हर किसी की दैनिक कामों को लेकर निर्भरता बढ़ती जा रहा है, लेकिन उसमें सामंजस्य बैठाना भी तो हमारा ही दायित्व है। क्या जब हम बीमार होते हैं तब इलाज नहीं कराते, डाक्टर को दिखाने नहीं जाते, अस्पताल में भर्ती नहीं होते या आपरेशन नहीं कराते। शादी ब्याह न अन्यान्य आयोजनों की जिम्मेदारी नहीं उठाते। आखिर तब तो हम मोबाइल से अधिकांश वक्त दूरी बनाए रखते हैं। भले ही मजबूरी में ही सही। और बहाना होता है व्यस्तता। बस इसी व्यस्तता को हमें अपने दैनिक जीवन में शामिल करना होगा। जब हम खुद मोबाइल से फासला बना कर चलेंगे तो अपने और अपने बच्चों, परिवार को समय देंगे। अपने को अन्य गतिविधियों में लगायेगे, कुछ नया करने का प्रयास करेंगे, खुद के साथ बच्चे और अन्य को भी उसमें शामिल कर पायेंगे, कुछ नया करने का प्रयास करेंगे, कुछ न कुछ नया सीखेंगे, या नया करने के लिए प्रेरित होंगे।अपने अंदर के जुनून को निखारने का अवसर पायेंगे। अपने को जब हम मोबाइल से अलग रखकर व्यस्त रहेंगे, ऐसे में हमारे बच्चे भी उसका अनुसरण करेंगे।
होता यह है कि हम अपने मजे, टाइमपास, लाइक, कमेंट और फालोवर्स के लिए भी मोबाइल में उलझे रहते हैं, जिसका हमारे या हमारे पारिवारिक और सामाजिक जीवन में कोई लाभ नहीं होता, उल्टे हम अपने बच्चों, परिवार या समाज को समय ही नहीं दे पाते हैं और फिर दोषी भी उन्हें ही मानते हैं। उनके साथ न खेलते, कूदते हैं, न संवाद करते हैं, न कुछ और सिखाते हैं नहीं कहानी कविता सुनते सुनाते हैं और न ही अख़बार पत्र पत्रिकाओं में रुचि दिखाते हैं, न बागवानी, कलाया कुछ ऐसा करने का प्रयास करते हैं जिसका अनुसरण बच्चे कर सके, बस बहाना बहाना और बहाना।
हमारे अपने ही बच्चों का बचपन छिन नहीं रहा है, हम खुद ही छीन कर उन्हें आधुनिक रूप से परिपक्व बनाने पर आमादा हैं। ईमानदारी से कहा जाय तो क्या हम इस वास्तविकता को नकारने की हिम्मत रखते हैं कि हम ही उनका बालपन छीनकर को बर्बाद करने के दोषी हैं और तब भी वो ही दोषी जिद्दी लगता है।
समस्या का समाधान हमारे ही पास है और समस्या के लिए सर्वाधिक दोषी हम हैं, समस्या को नासूर बनाने की दिशा में हमारा योगदान कम नहीं है और हम पल्ला झाड़ कर अलग नहीं हो सकते, क्योंकि इसके दुष्प्रभाव का परिणाम हमें भी झेलना है।
अच्छा है और जरुरत भी है, अभी तुरंत जाग जाने की वरना बहुत देर हो जायेगी और हम आप सब हाथ मलते रह जायेंगे?
उदाहरण के उदाहरण हम सब रोज बन रहे हैं, किसी के पास अपने और अपनों के लिए भी समय नहीं है, एक घर, एक परिवार, एक कमरे में साथ साथ/आमने सामने आसपास रहते हुए भी हम सब बहुत दूर होते जा रहे हैं। और अपेक्षाओं का बोझ बच्चों के कंधों पर धकेलने का अक्षम्य अपराध कर मुस्कुरा रहे हैं।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
Tag: लेख
157 Views

You may also like these posts

विकास
विकास
Shailendra Aseem
#ਹੁਣ ਦੁਨੀਆ 'ਚ ਕੀ ਰੱਖਿਐ
#ਹੁਣ ਦੁਨੀਆ 'ਚ ਕੀ ਰੱਖਿਐ
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
कारोबार
कारोबार
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
क्षणिका :
क्षणिका :
sushil sarna
*सत्पथ पर सबको चलने की, दिशा बतातीं अम्मा जी🍃🍃🍃 (श्रीमती उषा
*सत्पथ पर सबको चलने की, दिशा बतातीं अम्मा जी🍃🍃🍃 (श्रीमती उषा
Ravi Prakash
मन
मन
MEENU SHARMA
*Sunshine*
*Sunshine*
Veneeta Narula
नफरत
नफरत
Dr. Chandresh Kumar Chhatlani (डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी)
मुझे ख़्वाब क्यों खलने लगे,
मुझे ख़्वाब क्यों खलने लगे,
Dr. Rajeev Jain
बेटियाँ
बेटियाँ
Shweta Soni
कर्मफल भोग
कर्मफल भोग
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
हम मुहब्बत कर रहे थे........
हम मुहब्बत कर रहे थे........
shabina. Naaz
अयोध्या धाम
अयोध्या धाम
Mukesh Kumar Sonkar
हक मिल जाए
हक मिल जाए
संतोष बरमैया जय
*शादी के पहले, शादी के बाद*
*शादी के पहले, शादी के बाद*
Dushyant Kumar
💐तेरे मेरे सन्देश-3💐
💐तेरे मेरे सन्देश-3💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
पढ़े लिखें परिंदे कैद हैं, माचिस से मकान में।
पढ़े लिखें परिंदे कैद हैं, माचिस से मकान में।
पूर्वार्थ
प्रश्न - दीपक नीलपदम्
प्रश्न - दीपक नीलपदम्
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
हिन्दी गीति काव्य में तेवरी की सार्थकता +सुरेश त्रस्त
हिन्दी गीति काव्य में तेवरी की सार्थकता +सुरेश त्रस्त
कवि रमेशराज
तौबा ! कैसा यह रिवाज
तौबा ! कैसा यह रिवाज
ओनिका सेतिया 'अनु '
ये साल बीत गया पर वो मंज़र याद रहेगा
ये साल बीत गया पर वो मंज़र याद रहेगा
Keshav kishor Kumar
प्रकृति का दर्द
प्रकृति का दर्द
Abhishek Soni
माँ की दुआ
माँ की दुआ
Anil chobisa
■ लघु व्यंग्य :-
■ लघु व्यंग्य :-
*प्रणय*
*तू और मै धूप - छाँव जैसे*
*तू और मै धूप - छाँव जैसे*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
कारण
कारण
Ruchika Rai
7) तुम्हारी रातों का जुगनू बनूँगी...
7) तुम्हारी रातों का जुगनू बनूँगी...
नेहा शर्मा 'नेह'
"ऐसी राह पर"
Dr. Kishan tandon kranti
मैं जिससे चाहा,
मैं जिससे चाहा,
Dr. Man Mohan Krishna
अतीत की स्मृतियों से
अतीत की स्मृतियों से
Sudhir srivastava
Loading...