मोबाइल दैत्य
मोबाइल खा गया है जीवन प्यार
रिश्तों का टूट गया है पूर्ण आधार
मोबाइल दैत्य जब से है आया
रिश्तों का निगल गया प्रेमप्यार
जो थे पार समुद्र हो गए हैं पास
रिश्ते छत नीचे हो गए कोसों दूर
पास बैठे होते हैं ले हाथों में सैल
ओनलाइन रहते,जो उनसे सुदूर
परस्पर नहीं करते बातें हो पास
तन यहाँ पर मन होता वहाँ दूर
गृहिणी संग मोबाइल अब व्यस्त
रहने लगे हैं घरेलू अधूरे सब कार
माँ बच्चे भाई बंधु रिश्ते हुए पराये
चैट अग्न में खाक हो,हूए हैं बहुदूर
बालक हुए शारीरिक खेलों से दूर
मोबाइल द्वारा हो कर सब मजबूर
मजदूर या रईस बन गए हैं खिलौनें
छिने सभी के मोबाइल ने अधिकार
जो लोग हैं पास उनका तिरस्कार
जो हैं दूर यह यंत्र जतवाता प्यार
मोबाइल खा गया है जीवन प्यार
रिश्तों का टूट गया है पूर्ण आधार
सुखविंद्र सिंह मनसीरत