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8 Apr 2019 · 1 min read

मोबाइल की दुनिया

मोबाइल की है ये दुनिया
व्यस्त इसी में चुनिया मुनिया
रहते हैं अब गुमसुम आँगन
सूने सूने रहते उपवन
छीन लिया बच्चों का बचपन
नहीं खिलौनों में रमता मन
दाल शाक कुछ इन्हें न भाते
दूध देख कर नाक चढ़ाते
रोटी का इक कौर न खाते
लेकिन पिज़्ज़ा खूब उड़ाते
फास्ट फूड का चलन निराला
बर्गर भाता मेकडी वाला
तभी आंख पर दिखती ऐनक
मोटापा भी देता दस्तक
गूगल जी अब पाठ पढ़ाते
संस्कार पर सिखा न पाते
सुविधाएं तो अब ज्यादा है
चैन रह गया पर आधा है
मोबाइल से बाहर आओ
कुदरत से सम्पर्क बनाओ
छोटा सा है जीवन अपना
पूरा करना है हर सपना

09-04-2019
डॉ अर्चना गुप्ता

2 Likes · 339 Views
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