मोबाइल की चमक से भरी रातें,
मोबाइल की चमक से भरी रातें,
इंसान की जिंदगी की, बदल गई कई सारी बातें।
स्मार्टफोन के खेल, और चैटिंग करने की होगई आदतें
रिश्ते हुए दूर, और कम होगई अपने लोगो से बाते ।
बुझ गई हँसी, चली गई सजगता,
बच्चों से बड़े तक सबने करली मोबाइल से मित्रता ।
स्पष्टता की गुहार, टाइपिंग के साथ,
भूल गए हम, थामना अपनो का हाथ।
पहले जो धुंधला सपना था जिंदगी का,
अब वही सपना है, स्क्रीन के पीछे छिपा।
सच्चाई की जगह, दिखावे की हो गई परंपरा,
सोशल मीडिया पर ही अब हैं हमारा सवेरा।
कभी कलम लिखते थे, अब उंगलियाँ टाइपिंग में उलझ पड़ी है,
इंसान कब समझेगा?अपनो के साथ वक्त बिताने की यही एक घड़ी है।