मोबाइल का आशिक़
मोबाइल में सर को घुसाने लगा है
वो चलते हुए लड़खड़ाने लगा है
है लगता नहीं मन किताबों में उसका
रमी और पब जी चलाने लगा है
भले फीस कालेज का है अधूरा
वो गेमिंग में पैसे उड़ाने लगा है
दिवाना हुआ जबसे सेल्फी का यारों
नहाता नहीं था नहाने लगा है
वो यूँ रील का हो गया है दिवाना
कि सारे जहाँ को भुलाने लगा है
है ‘आकाश’ खुद ही मोबाइल का आशिक़
ज़माने को कमियाँ गिनाने लगा है
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 12/10/2022