मोक्ष
#दिनांक:-18/10/2023
#शीर्षक:- मोक्ष
कल राति की भोरहरी मॅ,
कन्हइया सपने मॅ अइलें,
निमेष चक्षु, बहुत अचरज दिखल,
ठगल-ठगल,
हम बावरी जइसी देखत रहली,
सुन्दर सलोना कान्हा की सुरतिया लुभावन जईसन
आँख मोरनी सी, नाक सुगवा जईसन ,
मथवा चौड़ा भाग्य चमकीला जईसन ,
अधरों पर मुस्कान अति शोभित,
केश, केशव का घुंघराला जईसन ।
मनमोहिनी मुरतिया, सुरतिया ओजस्वी, तपस्वी सखी,
अंखियाँ फिसलत ना मोर एक क्षण सखी,
रोशनी की जगमगाहट में,
चकाचौंध हो गईल रहली सारी रतिया सखी।
सुरीली बाँसुरी की धुन पर सुधबुध खोई,
हम त विक्षिप्त पागल सा खुशली ,
श्यामल मोहन के प्रेम बारिश में भीग ,
मानुष जनम में प्रेम से तर मोक्ष पयली |
रचना मौलिक, अप्रकाशित, स्वरचित और सर्वाधिकार सुरक्षित है।
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई