मोक्ष
मोक्ष..
‘मानव की अंतिम इक्छा का,
एक अबुझ पहेली,
क्या ‘जीवन’ के कर्मों से मुक्त होना है मोक्ष
या इस नश्वर शरीर को त्यागना है मोक्ष
विचारें,
क्या शरीर से आत्मा का अलग होना है मोक्ष.
त्रिलोक का यह अनोखा ‘शब्द’
जो न जाने कितने रूप से परिभाषित है
जितने पंथ उतनी व्याख्याएं
पर कितना सरल है
इसको इस रूप में
परिभाषित करना-
कर्म की निरंतरता है मोक्ष
मानव की सेवा में संलिप्त हो जाना है मोक्ष
ईश्वर के प्रतिनिधित्व को निभाना है यह मोक्ष
यह मोक्ष
न धार्मिक कर्मकाण्ड है
और न कोई जटिल प्रक्रिया
यह है अमिट छाप छोड़कर
शरीर को त्यागने के सत्य को स्वीकार करने की कला
यह है-
प्रभु द्वारा प्रदत्त शक्ति का
मानवता की
सेवा में
यथावत् समर्पित करना.