मोक्ष का वरदान
ईश्वर,
कभी कुछ देना यदि
मुझे मोक्ष का वरदान देना।
जीते–जीते थके लोगों के दर्द
कभी नहीं दे सकता
इत्मीनान से जीने का हक।
अधूरी लगती है
जो कुछ भी जाता है जिया।
या
जाता है हासिल किया।
पहचान तो लेते ही हैं लोग
धूत्र्त और चालाक लोगों की
फितरत
किन्तु‚
निरीहता इतनी होती है प्रबल
कि
संस्कार और सामाजिक सरोकार जैसे
शब्दों की ले लेते हैं आड़।
मेरा अफसोस
सागर जितना बड़ा और गहरा है।
मेरी मोक्ष की इच्छा का कारण
मैं नहीं बल्कि हैं
अतृप्त इच्छाएँ।
ये किसी जन्म में नहीं होंगी पूरी।
हरेक जन्म में
अलग–अलग इच्छाएँ,
अद्वितीय इच्छाएँ।
इच्छाओं के अलग–अलग आयाम।
मैं इच्छाओं के लिए
बार–बार जन्म नहीं चाहता लेना।
हे ईश्वर!
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अरूण कुमार प्रसाद