मॉ….सचमुच मॉ पत्थर सी हो गई है .
कहते है दिल की बात जुबॉ पर न लाओ तो दिल पर अंकित हो जाती है
दिल पत्थर का हो जाता है
शायद सच ही है …80 वर्ष की उम्र मे मम्मी सचमुच पत्थर की हो गई …कहने को तो इतना बड़ा परिवार ..बेटे बहू नाती पोते से भरा ..पर थम सी गई है वो और उनकी जिंदगी ..सिमट गई है एक कमरे मे ..पिछले दो बरस से .
कितनी रौनके रहा करती थी कभी ..हर त्योहार पर ..या यू कहे कि हर दिन ही त्येहार की तरह था ..अपनी खुशी से ज्याद दूसरो की खुशी सर्वोपरी थी …पर आज अपनी खुशियों के लिए दिल बेचैन है ..
आज ही का दिन था २९ जनवरी २०१५ की काली सुबह ..अचानक भैया को ह्दय आघात ….चंद मिनटो मे सब कुछ खत्म ..बाबू जी दौड़े ..पुत्र की इस हालात को देखते ही लकवा मार गया ..आवाज बंद ..भैया को देखे या बाबू जी को …सचमुच मॉ पत्थर हो गई …बदहवासी का आलम ..जिसे देखो वो ही परेशान . इतना बड़ा हादसा ….पर वक्त से बड़ा कुछ भी नही होता …वक्त ही क्रूरता दिखाता है वक्त ही घाव भरता है ..१५ दिन बाद बाबू जी अस्पताल से वापस आगए . न बोल सके न चल सके ..पर अभी वक्त का मजाक थमा नही .. मॉ जिन्हे हम हिमालय सा सख्त कहा करते थे ..उनकी अडिगता पर नजर लग गई ..अभी भैया को गुजरे महीना भी नही गुजरा था कि अचानक घर के बड़े दामाद का ह्दयगति रूक जाने से निधन हो गया ..मॉ के दिल पर
क्या बीती होगी ..एक तरफ बेटे को खोया ..एक तरफ बेटी का संसार उजड़ गया ..बाबू जी …जो बिस्तर पर थे ..आखिर कार .अंतिम विदा ले ली इस क्षणभंगुर संसार से …आज मॉ इतनी बेबस निरीह लाचार ..नजर आती है ..न मॉ बहू के सामने दुख प्रकट कर सकती है न बेटी के समक्ष ..चट्टान सी सिथर हो गई है ..सचमुच मॉ पत्थर सी हो गई है …जुबॉ को सी चुकी मॉ शायद अकेले पड़े पड़े अपनी भी मुक्ति की राह देख रही है
संस्मरण है ..लेख नही