मॉ क्यों?
मॉ क्यों लगती है
मेरी किलकारी
तुझको अपनी लाचारी
मॉ क्यों करती हो तुम
अपनी बिटिया से ही गद्दारी
मॉ आ जाने दो ना
मुझको भी अपने घर-ऑगन में
खुशबू बिखरा कर रख दूंगी मॉ
मैं तेरे वन-उपवन में
मेरे पीछे फिर-फिर
भंवर करेंगे गुन-गुन गुंजन
तितलियॉ मंडराएंगी और
खुल उठेंगे सारे सुमन
मॉ मेरे रूप में खुद को
तुम कर दो ना साकार
मॉ मुझको भी धरती पर लाने का
कर दो तुम उपकार
मॉ मैं भी तेरी दुनिया में
आना चाहती हूं
तेरी मीठी-मीठी लोरी सुन
सोना चाहती हूं
मॉ मैं तेरे साये तले
पलना चाहती हूं
मॉ मैं तेरी उँगली पकड़
चलना चाहती हूं
मॉ मेरी चाहत है
खोलूं मैं तेरे संग
ऑख-मिचौली
जो हम-तुम संग हों
तो कितनी रंगीली होगी
अपनी भी होली
मॉ रखती जब मैं
डगमग-डगमग कदम
मॉ होती कितनी मैं खुश
जब खिल जाता तेरा मन
मॉ अगर न होती मैं
तेरी लाचारी
कितनी होती मैं
तेरी आभारी
तुम बस मेरी मॉ न होती
तुम तो मेरी दिल-ओ-जॉ भी होती
तुम पर तो ऐसे शतियो जनम
मैं कर देती कुर्बान
मॉ एक बार तो दे देती
मुझे अपनी बेटी बनने का सम्मान
मॉ !मैं खूब समझती हूं
तेरी ये लाचारी
मेरे पीछे पड़ी है
ये जालिम दुनिया सारी
पर मेरी मॉ ऐसी
तो न थी कभी नादान
भाई के जैसा अपने दिल में
दे देती मुझे मुकाम
नहीं कोई शिकायत
न शिकवा करूंगी
मॉ बस आज तुमसे
ये दो बातें कहूंगी
मॉ आज मैं उनको
करना चाहती हूं सलाम
जिसने मेरी मॉ को
बेटी बनने का दिया था सम्मान
जिसने मेरी मॉ को बनाया था
अपनी जीवन का शान
जिसने मेरी मॉ के पूरे
कर दिए थे हर अरमान
जिसने मेरी मॉ के पूरे
कर दिए थे हर अरमान।।।।।।।।।।।।।
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