मै सिमटकर रहूँगा कब तक ?
मै सिमटकर रहूँगा कब तक ?
यूँ रात भर जगूँगा कब तक ?
बदन दुखता है बैठे- बैठे
मै चाँद को घुरूँगा कब तक ?
एक दर्द उठता है रोजाना
अहजान संग जियूँगा कब तक ?
ज़ख्म-ए-जबीं तस्वीर बनी है
रंग चुन चुन भरूँगा कब तक ?
आकर खुशी यह बताती चल
नौबत-ए-ख्वार गिनूँगा कब तक ?
आदत नही छुपाने की थी
दम घुट घुट के सहूँगा कब तक ?
दर्द यह कितना कातिब है ‘मनी’
कि मरसिए पढ़ कहूँगा कब तक ?
-शिवम राव मणि