मै समर्पित करता हूँ तुम्हें
मै समर्पित करता हूँ तुम्हें
सूर्यास्त के बाद आई
एक खामोश सी ,
ठंडी दोपहरी
एक तपती सर्दी
एक सादी चुनरी
.
मै समर्पित करता हूँ तुम्हें
आंखो के काजल का
बाहरी कोना
भोर का सोना
अपना बिछौना
पनपता खिलौना
.
मै समर्पित करता हूँ तुम्हें
भोजन की थाली का
पहला इंकार
मौन सा विस्तार
अनुपस्थित प्रतीकार
उपस्थित घरबार
.
मै समर्पित करता हूँ तुम्हें
तुम्हारी प्यारी चुप्पी
अपनी कलम की बेचैनी
अकस्मात ये यात्रा
छन्द की मात्रा।
©– सत्येंद्र कुमार