मै शीशा हूँ की पत्थर हूँ
मुझे तुमसे मुहब्बत है कभी झुठला नही सकता/
कोई भी छीन कर मुझसे तुम्हे ले जा नही सकता//
तू मेरी जिंदगी है इस कदर की क्या बताऊ मै/
कलेजा चिर कर अपना मगर दिखला नही सकता//-
बहुत कमजोर हूँ मै झूठ सच का फर्क करने में/
मै शीशा हूँ की पत्थर हूँ तुम्हे समझा नही सकता//
दिखाना चाहता हूँ मै तु दिल का इक करीना है।
मगर महबूब मेरे दिल के अन्दर आ नही सकता।।
जो मिलता बाप माँ से है तू इतना जान ले मुझसे/
फलक वाले से इतना सब कभी भी पा नही सकता//
-आमोद बिंदौरी