मै रावण ही सही
मैं तुम से दूर रहता हूँ।
कारण साफ कहता हूं।
अच्छाई बुराई दोनों है मुझमे।
अच्छाई ज्यादा बुराई कम है।
लेकिन मुझे जिस बात का गम है।
वो बस इतनी सी है।
कि तुम बुराई को
लंबे समय तक याद रखते हो।
ओर अच्छाई को दो दिन में
पूरा भूल जाते हो।
मैं भी रावण ही हूँ न।
बुराई बिल्कुल न हो।
वो राम तो नहीं हूँ।
हो भी नही सकता,
कितने कष्ट फिजूल सहे।
अब इसे कौन मर्यादा कहे।
जो जानकी
जान से ज्यादा प्रिय।
उसे भी छोड़ना ।
सिर्फ इस वजह से,
कि मर्यादा नही तोड़ना।
भाड़ में जाये ऐसी,
मर्यादा ओर सिध्दांत।
मुझे नही बनना राम।
मैं रावण ही सही ,
चाहे तुम करो मेरा अंत।
मेरी तो बात साफ है।
तुम्हे पसन्द हो तो करो।
नही तो कोई बात नहीं।
मुझे माफ़ करो।
कलम घिसाई