मै बेटी हूॅ
बेटी पर एक रचना निवेदित—
——————————
मै बेटी हूॅ*—
—–*-*-*——
तुम्हे रिझाने को
भूल बैठी अपना
अस्तित्व
दर्द के कोहरे से
बचाना ही तो था
हमारा ममत्व । मै बेटी हूॅ–
तुम्हे पाकर मै
स्वंय मे खो जाती हू
फिर से धरती को
सजाने के लिए
एक ख्वाब बुन जाती हू। मै बेटी हूॅ—
हर घर मे उजाला देना
तिल तिल जलना भी
बनकर दीप बाती।
जलना हमारी नियति है।मै बेटी हूॅ——–
कच्चे धागे से बॅधी
कठपुतली की तरह नाचती
फिर भी हूॅ कितनी मग्न
उन्हे पाकर जो नही थे अपने –मै बेटी हूॅ—–
पलको के झरोखों से
झांकती गहरे दरिया मे
छन छन कर कुछ बूंदे आती
बिखर जाती मन का दरपण
साथ लिए–मै बेटी हूॅ—–
जीना चाहती हू एक
आश लिए
मन मे विश्वास लिए
परिंदो की भांति
उडकर छू लेना चाहती हूॅ आकाश । मै बेटी हूॅ
प्रमिला पान्डेय
कानपुर
सम्पर्क सूत्र–9918777524