*मै बेटी हूॅं (गीत)*
मै बेटी हूॅं (गीत)
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मैं बेटी हूॅं मुझे पालने में मॉं फर्क न करना
(1)
मुझे समझना बेटे-जैसा, घर का एक उजाला
मुझे पालना वैसे ही, भैया को जैसे पाला
मेरी लक्ष्मण-रेखा मत खींचो तुम सिर्फ रसोई
मुझे न हरगिज रहना है चूल्हे-चौके में खोई
पुरुषों के आरक्षित-उपवन, में है मुझे विचरना
(2)
नहीं बनाना ऐसा, झाड़ू-पोछा सिर्फ लगाऊॅं
बर्तन मॉंजूँ-कपड़े धोकर छत पर सिर्फ सुखाऊँ
नहीं चाहिए घर की सीमा, में ही केवल रहना
विश्व-पटल पर प्रतिभा चमके, मेरा है यह कहना
पुरुष-प्रधान समाज आज है, उसमें मुझे उतरना
(3)
जब जाऊॅं ससुराल नहीं कठपुतली बन रह जाऊॅं
गुड़िया चाबीवाली-जैसी हरगिज नजर न आऊॅं
माँ तुम घुट कर रहीं हमेशा किसी कैदखाने में
मॉं तुम असफल रहीं सदा ही आजादी पाने में
मैं बेटी हूॅं मुझे ढंग से अपने सिर्फ निखरना
मैं बेटी हूॅं मुझे पालने में मॉं फर्क न करना
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451