***मै प्रेम दीवानी घनश्याम की***
***मै प्रेम दीवानी घनश्याम की***
प्राणों के दीप जलाऊँ प्रतिपल,
मै प्रेम दीवानी घनश्याम की।।
सकल जगत बोले मुझपे व्यंग्य हैं,
हुआ जब से शुरू मेरे प्रेम का प्रसंग है।
होती चर्चे यहाँ बस तेरे,मेरे नाम की।
मै प्रेम दीवानी घनश्याम की।।
बावरी जिससे हुई मन मेरा उन्माद है,
कैसे मै बताऊँ तेरी बंसी की कलनाद है।
मोहिनी मूरत तेरी उर मे बसाऊँ,
सौगात है मेरे अरमान की।
मै प्रेम दीवानी घनश्याम की ।।
रोली, पुष्प कहाँ से लाऊँ मै,
प्रीत भाव से पूजा रचाऊँ मै।
कैसे बताऊँ हर बात री अली,
मै उपवन की सुकुमार कली।
आया बसंत बन के अरि मेरी जान की।
मै प्रेम दीवानी घनश्याम की।।
स्वरचित…शिल्पी सिंह
बलिया– उ.प्र.