“मै पुरुष हूं”
रो नहीं सकता मै,
अश्कों को पीता हूं।
मै पुरुष हूं,सब कुछ ,
बड़ी आसानी से सहता हूं।
कभी बेटा,भाई , तो कभी,
बाप बनता हूं ।
मै सभी के जज्बातों,
का हिसाब बनता हूं
बिना कुछ कहे ,
मैं अपनी धुन में जीता हू
मैं पुरुष हूं सब कुछ ,
बड़ी आसानी से सहता हूं
मां और पत्नी के बीच ,
अक्सर फस जाता हूं।
और किसी का भी पक्ष लूं *
तो मैं ही बुरा कह लाता हूं
दरख़्तों की तरह,
ख़ामोशी से जीता हूं
मैं पुरुष हूं सब कुछ ,
बड़ी आसानी से सहता हूं
बचपन से बुढ़ापे तक
जिम्मेदारी उठाता हूं
बच्चों की परवरिश ,उनकी खुशी,
उनके सपनों का बीड़ा उठाता हूं
सबको मान कर अपना ,
खुद को भूलकर जीता हूं
मैं पुरुष हूं सब कुछ
बड़ी आसानी से सहता हूं