मै ठंठन गोपाल
मै ठंठन गोपाल
बिछा हुआ हैँ सेज पर
अब काँटों का बौच्छर
मेरी मुहब्बत छोड़ गईं
मै हुआ ठंठन गोपाल..
विरहागनी पर जलते जलते
लिख रहा हूँ लेख
मेरी मुहब्बत अब छोड़ गईं
विधुर हृदय को देख.
तड़फ रहा हैँ विधुर हृदय
क्या लिखेगा लेख
मेरी मुहब्बत हृदय बसे
हृदय फाड़ कर देख.
लिखते लिखते हाथ हिली
लड़ख रहा जो बाल
मेरी मुहब्बत छीन गईं
मै हुआ ठंठन गोपाल
डॉ. विजय कन्नौजे अमोदी आरंग रायपुर