मै जो हूं पर्वत का दिल हूं
मैं कोई घाटी नही
किनारा नही कछार नही
ना मैं कोई हिमानी
जिस पर से दिन रात
बर्फ पिघलने को फिसलने को
तैयार खड़ी रहती है
मै तो वो हवा भी नहीं
जो ठंड का अनुभव कराती हो
ना मैं वो बर्फीला जल हूं
मछलीयां जिसमें तैरती नहाती हो
मैं तो वो सन्नाटा हूं
पत्थरों की वेदना का
जिसे तुम पर्वतों की
शांति कहके आनंदित होते हो