मै कैसे गलत हूँ ईश्वर?
जब से मैंने होश सम्भाला है,
आपका नाम सुना है ।
आप ही हो जग के रखवाले,
सबने मुझसे कहा है ।
आप ही जीवन देते-लेते हो,
ऐसा सब ने कहा है।
सब ने कहा है मुझसे आपने ही
इस संसार को रचा है।
इस संसार के हर कण-कण में,
आपका रूह बसा है।
जब तक आप न चाहो
इस संसार में एक पत्ता भी
नही हिलता है।
सुना है आपने अपनी रचनाओं में,
कोई भेद-भाव नही रखा है।
सुना है आपकी नजरों में,
राजा और रंक समान है।
यह जाति- धर्म, देश-विदेश
का विवाद,
यह सब चीजें इंसानों का
ही किया धरा है।
यह झुठ-सच,सही- गलत
सब इंसानो ने किया है।
अब आप बताओ मेरे ईश्वर ,
किन बातों पर विश्वास करूँ।
कैसे मैं इस सही गलत को तौलूं।
खुद पर मैं इल्जाम लगाऊँ,
या आप पर इल्जाम धरूँ।
जब डोर आपके हाथों में है,
फिर खुद को कैसे मै गलत कहूँ।
सबने क्या कहा मुझसे ?
तुम ईश्वर से सच्चे मन से मांगो,
वह तुम्हारी हर मुराद को पुरी करते हैं।
मै पूछती हूँ मेरे ईश्वर !
क्या उन भूखे बच्चों ने आपसे
सच्चे मन से कभी रोटी नही मांगा?
भूख से मरते बच्चे की माँ ने
क्या आपसे बच्चे के लिए
जीवन नही मांगा?
बारूद की ढेर पर बैठी दुनियाँ ने,
क्या आपसे शांति नही है चाहा।
आज जहां इंसान, इंसान का
खून बहा रहा है।
क्या किसी इंसान ने ,
आपसे इंसानियत नही है मांगा?
अगर आप ऐसे मै भी
चुप रह जाते हो,
सब देखकर भी अगर आप
अनदेखा कर जाते हो।
अगर ऐसे में भी आप
कुछ नही करते हो तो,
माफ करना मुझे ईश्वर!
मै क्यों नही आपकी
रचना पर प्रश्न उठाऊँ?
क्यों नही इस संसार के
सही गलत का इल्जाम
मैं आप पर लगाऊँ।
आखिर क्यों मै आपको
सिर्फ सही बतलाऊँ।
जब डोर आपके हाथों मे
फिर कैसे मै खुद को
गलत ठहराऊँ।
मैं क्यों नही आपके होने पर
प्रश्न उठाऊँ
अनामिका