मैने माँ! तुमसे सीखा है
शून्य हृदय का नहीं निरर्थक,
सक्रियता से जीवन सार्थक,
भिन्न दुःखों में सुख पा जाना,
मैने माँ! तुमसे सीखा है।
जीवन तो कलकल सी नदिया
बिन पतवार सँभाले नैया
और भँवर से बाहर आना,
मैने माँ! तुमसे सीखा है।
पतझड़ में गिर जाते पत्ते,
खा अधपके फलों के धक्के,
मलय सा फिर शाखे सहलाना,
मैने माँ! तुमसे सीखा है।
अनुभव ज्वालामुखी बने ना,
हार भी मन को दुखी करे ना,
घने दश्त मेंं दीया जलाना,
मैने माँ! तुमसे सीखा है।
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ